1 मई को मुख्यमंत्रियों और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की बैठक में वो नहीं आए। फिर न राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण में आए, न ही उनके सम्मान में पीएम मोदी के डिनर में। बस क्या था, भाजपा के साथ तनाव और बढ़ने की खबरें चलने लगीं। इसी बीच दाएं हाथ को उन्होंने धीरे-धीरे काट डाला। मतलब रामचंद्र प्रसाद सिंह से है। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में जब नीतीश कुमार केंद्रीय मंत्री बने, तब से आरसीपी उनके साथ रहे। तब यूपी कैडर के आईएएस थे और बाद में जेडीयू में टॉप पर रहे। पहले तो नीतीश ने उन्हें तीसरी बार राज्यसभा नहीं पहुंचाया। इसके बाद केंद्रीय इस्पात मंत्री की कुर्सी चली गई। फिर पार्टी ने ही भ्रष्टाचार के आरोप लगा दिए। कल आरसीपी ने जेडीयू को डूबता जहाज बता पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
नीतीश कुमार को लगता था कि आरसीपी भाजपा के जासूस हैं। ज्यादा ही नजदीक जा रहे हैं। और हो सकता है कुछ विधायकों को भी नजदीक ले जाने की कोशिश कर रहे हों। इसी डर से नीतीश कुमार ने 25 साल पुराने अपने खासमखास को उठाकर फेंक दिया
भाजपा नेता
कुछ सवाल आपके सामने रखते हैं। क्या आरसीपी जेडीयू के भीतर नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत की तैयारी कर रहे थे? क्या जेडीयू के कुछ विधायकों को अपने पाले में लाने की कोशिश आरसीपी की जानिब से हो रही थी? क्या बतौर केंद्रीय मंत्री बढ़िया प्रदर्शन के लिए भाजपा से तारीफ पाना उनके खिलाफ चला गया? इनके कुछ जवाब तो आरसीपी के बयानों से मिलता है। जब वो कहते हैं कि नीतीश कुमार सात जन्मों में भी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। लेकिन ये बात आई कहां से? तो कुछ बातें जो पटना की सियासी फिजा में तैर रही हैं, उस पर गौर फरमाइए। खेल तो 22 अप्रैल से ही शुरू हो गया था जब नीतीश कुमार पैदल ही राबड़ी देवी के घर इफ्तार पार्टी में पहुंच गए। उसके बाद एक हफ्ते में तीन बार तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार की बातचीत हुई। जीतनराम मांझी के घर वाले इफ्तार में तो तेजस्वी ने कहा – हम सीनियर नेताओं का सम्मान करते हैं। इसलिए मुझे भी सम्मान मिल रहा है। ये वही तेजस्वी यादव हैं जो नीतीश को पलटू चाचा के अलावा किसी और नाम से पुकारते नहीं थे। क्या आपने 22 अप्रैल के बाद नीतीश कुमार के लिए ऐसी भाषा का प्रयोग करते तेजस्वी को सुना है? यह सारे सवाल बिहार भाजपा के छोटे-बड़े नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं के जेहन में है।
दायां हाथ दागी तो बायां?
सृजन घोटाला हो या मामूली विभागीय लापरवाही, नीतीश कुमार पर सीधे वार करने वाली आरजेडी नरम है। यहां तक कि आरसीपी सिंह पर भ्रष्टाचार के आरोप जब नीतीश कुमार की पार्टी ने ही लगा दिए तो आरजेडी ने इसका समर्थन किया। नालंदा में हिलसा से पूर्व विधायक और आरजेडी प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने कहा कि आरसीपी टैक्स का मुद्दा तो तेजस्वी यादव खुद सदन में उठा चुके हैं। आज अगर जेडीयू ही इसे सामने ला रही है तो कार्रवाई होगी। जब मैंने पूछा कि वो नीतीश के दाएं हाथ थे तो क्या भ्रष्टाचार के छींटे उन पर नहीं पड़ेंगे। शक्ति यादव का कहना था कि ये जांच का विषय है। यही नहीं उन्होंने भाजपा कोटे से कुछ मंत्रियों के फैसले बदलने के लिए भी नीतीश की तारीफ की। जब कुरेदा कि क्या 27 जुलाई, 2017 की तरह अचानक कुछ हो भी सकता है तो उनका कहना था वैचारिक आधार पर अगर गैर-बीजेपी पार्टियां साथ आती हैं तो इसमें क्या दिक्कत है?
इससे पहले आरसीपी के करीबी अजय आलोक को जेडीयू ने हटा दिया
उधर, भाजपा इसी थ्योरी को मान कर चल रही है। इसके मुताबिक सावन बीत जाए वही बहुत हैं। आशंका है कि नीतीश कुमार जल्द ही कोई बड़ा फैसला कर सकते हैं। पार्टी के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ऑपरेशन आरसीपी इसी का हिस्सा है। वो कहते हैं, ‘नीतीश कुमार को लगता था कि आरसीपी भाजपा के जासूस हैं। ज्यादा ही नजदीक जा रहे हैं। और हो सकता है कुछ विधायकों को भी नजदीक ले जाने की कोशिश कर रहे हों। इसी डर से नीतीश कुमार ने 25 साल पुराने अपने खासमखास को उठाकर फेंक दिया।’ वहीं एक वरिष्ठ नेता ने बताया, ‘हम लोग एक अनप्रेडिक्टबल (अप्रत्याशित) बात कर रहे हैं और जिसके बारे में बात कर रहे हैं वो भी अनप्रेडिक्टेबल है। और ये बात सही है कि हाल ही में ललन सिंह ने कुछ विधायकों को बुलाकर मन टटोला था कि उधर जाएं तो उन्हें कोई दिक्कत तो नहीं। ये सब अभी ललन सिंह कर रहे हैं।’
दोनों पार्टनर एक-दूसरे को झेल रहे
ये तय है कि भाजपा का स्टेट यूनिट नीतीश को एक-एक दिन झेल रहा है। भाजपा कोटे से एक मंत्री ने ही ये बात कही। भाजपा को लगता है 43 सीटों वाली पार्टी के नेता को सीएम बनाकर पार्टी अपना नुकसान कर रही है। वहीं नीतीश की पार्टी के नेता भी यही सोचते हैं। कुछ दिनों पहले नीतीश के एक करीबी नेता ने बताया था, आप कल्पना कीजिए नीतीश कुमार कैसे उन दो डिप्टी सीएम के साथ काम करते होंगे। उनकी योग्यता देखिए। फिर परिणति क्या होगी? कुछ जानकार बताते हैं कि लालू जब तक पटना में सक्रिय थे, तब तक नीतीश के लिए ज्यादा आसान था पर तेजस्वी यादव अति आत्मविश्वासी हैं। अपने भविष्य को लेकर। वहीं भाजपा खेमा मानकर चल रहा है कि स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है।
हम लोग एक अनप्रेडिक्टबल (अप्रत्याशित) बात कर रहे हैं और जिसके बारे में बात कर रहे हैं वो भी अनप्रेडिक्टेबल है। और ये बात सही है कि हाल ही में ललन सिंह ने कुछ विधायकों को बुलाकर मन टटोला था कि उधर जाएं तो उन्हें कोई दिक्कत तो नहीं। ये सब अभी ललन सिंह कर रहे हैं
एक वरिष्ठ भाजपा नेता
अगर स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है तो कुछ दिनों पहले ही अमित शाह ने खुद पटना में क्यों कहा कि 2024 और 2025 के चुनावों में भाजपा नीतीश के साथ ही चुनाव लड़ेगी। तो इसका जवाब भी भाजपा के स्थानीय नेताओं के पास है। एक पार्टी प्रवक्ता कहते हैं – भाजपा गठबंधन धर्म का मजबूती से पालन करती है। हम नहीं चाहते कि नीतीश कुमार फैसला खुद का करें और उसका कारण हमें बताएं। राज्य यूनिट के कई नेता इसलिए भी परेशान हैं कि उनको लगता है केंद्रीय नेतृत्व इस बात को पूरी तरह नहीं समझ पा रहा कि बिहार में क्या चल रहा है। कुल मिलाकर जबर्दस्त सस्पेंस है। बिहार की सियासत इसी के लिए जानी जाती है। आपको लगातार गेस करना पड़ता है कि क्या होने वाला है। तो हम भी इंतज़ार करते हैं।
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